देवरिया बालिका गृह में कथित यौन शोषण की कहानी पड़ोसियों की ज़ुबानी

कुछ अन्य अधिकारियों के ख़िलाफ़ भी कार्रवाई की गई है. बाल संरक्षण गृह चलाने वाले दो लोगों को गिरफ़्तार भी किया गया है.
लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि आख़िर एक अवैध संरक्षण गृह में ख़ुद पुलिसकर्मी लड़कियों को छोड़ने के लिए क्यों आते थे?
देवरिया रेलवे स्टेशन से महज़ कुछ 100 मीटर की दूरी पर एक पुरानी इमारत की पहली मंज़िल पर बने इस संरक्षण गृह को फ़िलहाल सील कर दिया गया है. वहां के कर्मचारी भाग गए हैं या फिर भगा दिए गए हैं.
आस-पास के लोग इस बात से हैरान हैं कि उनकी 'नाक के नीचे' ये सब हो रहा था और उन्हें ख़बर तक नहीं थी.
जिस इमारत की ऊपरी मंज़िल पर मां विंध्यवासिनी बालिका संरक्षण गृह है, उसी इमारत के ग्राउंड फ़्लोर पर केपी पांडेय की स्टेशनरी की दुकान है और एक प्रिंटिंग प्रेस भी. इमारत के पिछले हिस्से के ठीक सामने उनका पुश्तैनी घर है.
केपी पांडेय बताते हैं, "हम लोगों को तो इस बात का कोई अंदेशा भी नहीं था कि यहां ये सब हो रहा है. पुलिसवाले लड़कियों को छोड़ने आते थे, उन्हें ले जाते थे यहां तक कि लड़कियां स्कूल भी जाती थीं और कई बार तो हमने उन्हें पिकनिक मनाने के लिए भी जाते हुए देखा है."
केपी पांडेय बताते हैं कि गिरिजा त्रिपाठी की ये संस्था तो काफ़ी पुरानी है, लेकिन आठ साल पहले उन्होंने ऊपरी हिस्से को किराए पर लेकर ये बालिका संरक्षण गृह खोला था.
उनके मुताबिक़ दिन में तो यहां उन्हें कोई आपत्तिजनक हरकत नहीं दिखी, बाद में क्या होता था, उसके बारे में उन्हें कोई ख़बर नहीं है.
वहीं पड़ोस में ही रहने वाले मणिशंकर मिश्र कहते हैं कि गिरिजा त्रिपाठी और उनके पति बालगृह के अलावा परिवार परामर्श केंद्र भी चलाते थे और उनके मुताबिक़ इन लोगों ने कई परिवारों को आपस में मिलाने का भी काम किया है.
इसके अलावा इनके पास लोग शादी-विवाह के मामले में भी सलाह लेने आते थे.
मणिशंकर मिश्र दावा करते हैं कि चीनी मिल में मामूली नौकरी करने वाले गिरिजा त्रिपाठी के पति आज करोड़ों की दौलत के मालिक हैं और इसी तरह के कई संस्थान चला रहे हैं.
बावजूद इसके मणिशंकर मिश्र गिरिजा त्रिपाठी का बचाव भी करते हैं, "ये लोग बच्चियों को गोद भी देते थे, उनकी शादी भी कराते थे. जिन 18 लड़कियों के ग़ायब होने की बात की जा रही है, हो सकता है कि उन्हें ऐसी जगहों पर ही पहुंचाया गया हो. यदि ऐसा हुआ तो ये बच भी सकती हैं."
पड़ोसियों का ये भी कहना है कि यहां अक्सर रसूखदार लोग आते थे और गिरिजा त्रिपाठी को भी शहर के कई कार्यक्रमों में अतिथि के तौर पर बुलाया जाता था.
दरअसल, यहां उनकी पहचान एक समाजसेवी की रही है, कई सरकारी संस्थाओं के वो मानद सदस्य हैं, तमाम प्रतिष्ठित लोगों के साथ उनकी तस्वीरें भी हैं. ये अलग बात है कि जिन लोगों के साथ उनकी तस्वीरें थीं, वो अब ख़ुद का बचाव करते फिर रहे हैं.
इस बालिका संरक्षण गृह के संचालन, उस पर हुई कार्रवाई और मान्यता रद्द होने के बावजूद इसके अबाध संचालन के मामले में घोर प्रशासनिक लापरवाही और मिलीभगत के आरोप लग रहे हैं.
आलम ये है कि मान्यता रद्द करने का आदेश हुए एक साल से ज़्यादा हो गया है, लेकिन संरक्षण गृह की दीवारों पर 'उत्तर प्रदेश सरकार से मान्यता प्राप्त' का बोर्ड जगह-जगह अभी भी लगा हुआ है.
अनियमितता की शिकायतें मिलने के बाद पिछले साल 23 जून को संस्था की संचालक गिरिजा त्रिपाठी के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज कराने के निर्देश दिए गए थे, जबकि ज़िला प्रशासन ने एक साल बाद 30 जुलाई 2018 को एफ़आईआर दर्ज कराई.
इस दौरान पूरे साल भर शासन स्तर पर अधिकारी नोटिस भेजते रहे, लेकिन ये जानने की कोशिश नहीं की गई कि नोटिस पर कार्रवाई क्या हुई है. ख़ुद महिला एवं बाल विकास मंत्री रीता बहुगुणा जोशी ने भी इस बात को स्वीकार किया है.
पिछले साल राज्य भर में सचल पालना गृहों के संचालन में बड़े पैमाने पर धांधली और अनियमितता की शिकायतें मिलने के बाद ऐसी सभी संस्थाओं की जांच सीबीआई से कराई गई थी.
जांच के दायरे में देवरिया की ये संस्था भी थी. इस संस्था में भारी अनियमितता पाई गई. अधिकारियों के मुताबिक उस वक़्त भी यहां बच्चे पंजीकृत संख्या से कम मिले थे.

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